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रचना - गम्योड़ा सबद

अंतसतास
चितराम मण्डै अर दुड़ ज्यावै
साम्ही आवै अनै भलै लुक ज्यावै
कांईं ठाह कुण ?
नैणां री कोरां भीजै हिवड़ौ हूक उठावै
काया थरथराइजै अनै जीवड़ौ भरमाइजै
कांईं ठाह क्यूं ?
खुड़कै स्यूं आंख्यां चमकै मनड़ौ हरसावै
बारणौ कोलै तो कीं निजर नीं आवै
फलसै उभी उडीकै
कांई ठाह किण नै ?
रसोई करतां हाथ बलै काली उठै
चक्कू स्यूं आंगली बढै पण ठाह नीं लागै
कांईं ठहा कींयां ?
बांङरै आवण तांईं अठैङई हो
पण हमै गमग्यौ लाई जीवड़ौ
कांईं ठाह कठै ?
सुपनां रो चितराम नीं भूली कदैङई
पण सांचाई आवण पर लागसी
कांईं ठाह किस्याक ?
आंसूड़ा थमग्या भलै काम लागी
पण उडीक नीं छोडी बै आसी जरुर
कांईं ठाह कद ?

तरेड़ां
पड़गी है तरेड़ां
हिवड़ै री भींता माथै
उतर रैङया है लेवड़ा।
बालपणै जिकी लीपीज
किलोलां रै गारै स्यूं
कुण जाणै कद धड़म पड़ैला
जिनवाणी रै भारै स्यूं
जीव एकलौ ब्याध्यां घणी है
तपतै धोरां कद छिंयां तण है।
आं भींतां री माटी ठरै कियां
जद भेली-भेली सी रेवै है
जूणा मांय हरख री छीयां।
होली दियाली रो गारौ का
एढै-मेढै री आली माटी भी
नीं भर सकैला ऐ तेरड़ां।
टैम रै थापड़ां स्यूं मांडिज्योड़ी
अणखावणी ऐ तरेड़ां तो
होगी है पक्कायत
हिवड़ै री भींतां माथै।

फुरसतकोनीं
निजरां नीची कर्यां
लुकता छिपता
किंयां खनै कर
निसर ज्यावै
कई सैंधा लोग।
मोह बस
जे कदै धिंगाणै
झाल लेवां
उणां रो बूकियौ
गिलाणी नीं हुवै उणां रै
बै सरमावै कोनीं।
उल्टा आइज कैङवै
यार फुरसत कोनीं।

अरथ
जुगां स्यूं सोधां
बलती जिनवाणी रै तावड़ियै
अनै अमूझणी देंवतै अन्धारै मांय
आपौ आप रा अरथ
आपौ आप री परिभासा।
पण कदास बै अरथ अर परिभासावां
लुक्योड़ी है
क्लीज्योड़ी है
आपरै करमां री छींया रै ओलै
पछै कुण उण रा भेद खोलै !
कांईं ठाह बीं भेद रै
चवड़ै आवण रै डर स्यूं ही
मिरगलै री तिरसणा दांईं
अरथां नै सोधण रो
म्हें धिंगाणै इ सांग करां।

असल
लिध्ख दे मन री बात
क्यूं झांकै तूं इन्नै बिन्नै
तेरी कविता तेरै खन्नै
क्यूं सोधै तूं दूजां खन्नै।
पण लिखी फगत तूं सांची बातां
ना चाढी बणावलट री चासणी
ना जोड़ी झूठ रा तागा।
जद जाणां
ओलखां बी घड़ी म्हे
गम्योड़ा सबद
सबदां मांयली आंच
जूणां री सांच।
नीं तो तीसूं लिखारा
रोज सांग भरै
कविता रा छन्द बणावण सारू
सांच रा कण्ठ मोसै
अर झूठ स्यूं कागद काला करै।

आखर
अलघा बैठो भाई
अठै नीं है मोल
थारै आखरां रो।
अठै तो पांगर रैङया है
मून मांय तिरता
बिना आखरां रा सबद।

रावतौ
रावतौ सुथार
गांव री बडार मांय
छः झरड़ी धान खावै
पछै तीन सेर पटोलिया सरकावै।
बाबो आ बात सदांईं बतावै
कांई ठाह बन्नै रावतै री चिन्ता क्यूं सतावै
पण म्हारै आ बात नीं जंच्चै
इत्तौ अड़ंगो रावतै रै पेट मांय कींयां पच्चै ?
कालै आ बात म्हूं भायलै नै बताई
उणनै म्हारी बात सुण हांसी आई
बोल्यो रावतौ तो खावण री चीज खावै
पण म्हारा पाप कैङवै
आजकलै लोग कांईं ठाह कांईं-कांई सरकावै।
म्हारलो ठेकेदार काको
बणावै कच्ची
दिखावै पक्की भींतां
अनै साथै आरोगै
सरकारू सिमट भाटो अर ईंटां
जे कदास मौका हाथ लाग जावै
तो डामर री समूली सड़क चाब जावै
तन्नै कांईं ठाह बै कांईं-कांईं खावै।
कालै री मन्नै आई बात सतावै
लोग ईंट भाटो अर समूली सड़क कींयां जीम जावै ?
सोचूं घमोई
पण राण्डी-रोवणौ समझ नीं आवै
अर सोचां मांय आंख लागै
तो सुपनै मांय सिरजणहार आवै।
बै मुलक परा कैङवै
अरै भोला, तूं हर्षद रै इण्डिया मांय रेवै
आ बात तूं जाणै कोनीं
नीं जाणै तो तूं इण्डियन कोनीं।
त्यारा रूंख
ओ भारत कोनीं इण्डिया है
जणाईं तो इण्डियन अर भारतीय
आपसरी मांय खिण्ड रैया है।
चाल तन्नै रावतै अर ठेकेदार स्यूं
घणौ बेस्सी दिखाऊं
घणौ खावणियां रै नूंवैं कडूम्बै स्यूं मिलाऊं।
लुगायां गीगलै नै छोड
धोलै गण्डकै रा बुक्का लेवै
बोबो चूंघतै टाबर नै पोडर रो दूध देवै
टाबरिया लाई दई रोटी रो सुवाद भूलग्या
बासी आटै री डबल रोट्यां खा खा घणा फूलग्या
माऊ गीत गावै सदांईं
नकली बत्तीसी चढाऔ रै
कोडू रा बाबा
कदेई चिलकणै कागद आली
चाकलेट खड़ाऔ रै।
पण इण इचरज क्यां रौ भाया
खावणो-पीवणो तो जीव रौ पैलो करम
कलजुग मांय पेट पूजा सैं स्यूं मोटौ धरम।
आव, अब खावणियै कडूम्बै रै
सिरदरां खन्नै चालां
अर बांरी थाली मांयला
छप्पनभोग दिखालां।
थाणेदार जी चूरमो बणावै
अै सागड़दी कुत्तियै दांईं लपरका लेवै
चूरमै मांय काल मौत मर्योड़ो काचो छोरो
उण पर भाज्योड़ी छोरी रै घरां स्यूं आयोड़ौ घी
फलाणओ ढीकड़ी रै घरां बड़ग्यौ
करो भलांई कीं नीं
पण थाणेदार जी खाण्ड सोध लीन्ही।
डागदर जी आरोगै
मरतकालै पड़्यै मिनखां रै खून्जै रो जीमणौ
मरीज करो भलांईं
आन्नै चाइजै पत्तेदार सब्जी रो पौष्टिक परूसणौ।
कडूम्बै रा मोटा सिरदार नेता
बांरी थाली मांय लोई स्यूं भिज्योड़ो हिन्दुस्तान
अर नेता जी उणनै आरोगण सारू
कोर-कोर तोड़ै
सरकारू मुलाजम परुसणै मांय
गरीब मिनखां नै काची मतीरड़ी दांईं फोड़ै।
आव, आगै देख...
अरै कींकर ?
भोला रुंख, थारै कांई हुयो भाया
थारो मुण्डा क्यूं उतर्यो अर
क्यूं गलगली पड़ङर धूजै थारी काया ?
म्हूं पड़ूत्तर दियो
बस परभू बस
आगै रा दरसाव देख्या नीं जावै
म्हारो कालजो मूण्डै खानी आवै
भगवान मुलक्या नै अन्तर्धान होग्या।
आंख खुली तो म्हारी काया
पसेवै स्यूं भिज्योड़ी
अनै कण्ठ सूकता जावै
पण हमा बाबै री बात जंचगी
रावतो सांचाई इत्तो अड़ंगो खावै।
म्हनै लखायौ
कठै रावतौ अर कठै सरकारू ठेकेदार
कठै कडूम्बै रा मोटा-मोटा सिरदार
ऋेकेदार ईंट भाटो खावै
तो सिरदार सगल देस पचावै।
पठै तूं ई बता रै जीवड़ा।
लाई रावतो कांईं घणओ खावै ?

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